सेक्स वर्कर और उनके बच्चों के लिए परिवार जैसा कुछ होता है?

छोटी सी बच्ची की नोटबुक के एक पन्ने पर पेंसिल से बनी एक ड्रॉइंग है, जिसमें दो लड़कियां रो रही हैं और एक-दूसरे का हाथ थामे हुई हैं.

कमाठीपुरा के स्थानीय नगरपालिका स्कूल की तीसरी क्लास में पढ़ने वालीं सायमा अब इन लड़कियों के गाल पर आंसू के तीन बूंद बना रही हैं और उन बूंदों को थोड़ा गहरा कर रही हैं.

लतिका बताती हैं, "इन्हें अपनी मां की कमी खल रही है." इसके बाद सायमा फिर से पन्नों पर ड्रॉइंग बनाने में जुट जाती हैं. अब वह एक बर्थडे पार्टी का चित्रांकन कर रही हैं. एक बड़ा केक, मोमबत्ती, गिफ़्ट्स, पंखा और खुशी से चहकते बच्चों से भरा कमरा.

एक दूसरी छोटी बच्ची भी अपनी नोटबुक खोलती है. उसमें दिल की ड्रॉइंग बनी हुई है, एक लाइन से वो इसे दो हिस्सों में बांट रही है. इन बच्चों ने अपनी नोटबुक में जो बनाया है, उसमें कोई घर नहीं है और न ही घर के बाहर कोई चारदीवारी है.

उस शाम 50 के क़रीब बच्चे रात में चलने वाले शेल्टर में लौटकर आए हैं. यह शेल्टर मुंबई के बदनाम इलाके कमाठीपुरा में ग़ैर सरकारी संगठन प्रेरणा की ओर से चलाए जा रहे हैं. इस शेल्टर में सेक्स वर्करों के बच्चों को रात भर रखने की व्यवस्था है.

शेल्टर के कमरे पूरी तरह से सुसज्जित हैं. दीवारों पर क्रिसमस की सजावट दिख रही है. एक ब्लैक बोर्ड है और एक छोटा सा समुद्र तट भी बना हुआ है.

प्रकाशित तारीख : 2020-01-27 04:18:42

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