जख्म और नमक

 

वसन्त लाेहनी


कितने नमक डालते हो मेरे जख्मों पर
ऐसा ना हो कि नमक पिघल ना सके
मेरे नाम में मौज करने के लिए मुझे ही लूटते हो
मुझे ही जख़्मी बनाकर
और नमक डालते हो
यह कैसा खेल है पीड़ा मैं सहता रहूं
तुम मेरी नाम के माला जप के मुझे लूटते रहो
यह कैसा अंधेर है दिन को रात में तबदील करने का
जहां काँपता हुआ मुझे दिखा कर 
तुम धूप सेक रहे हो
और मैं ठंडक में लावारिस बनता रहा हूं
तुम तो आते हो जाते हो तुम्हारी क्या पहचान
जब निकल जाओगे बदनाम हो कर के
चंद दिनों में गुमनाम भी हो जाओगे
लेकिन मुझे तो यही रहना है मेरी धरती में
जिसको क्षत-विक्षत तुम कर रहे हो

प्रकाशित तारीख : 2021-04-20 20:24:00

प्रतिकृया दिनुहोस्

    वाह! जब निकल जाओगे बदनाम हो कर के चंद दिनों में गुमनाम भी हो जाओगे लेकिन मुझे तो यही रहना है मेरी धरती में जिसको क्षत-विक्षत तुम कर रहे हो

    • 3 वर्ष पहले
    • Birbhadra Acharya