।। मैं निर्धन की झोपड़ी हूँ ।।

मैं निर्धन की झोपड़ी मेरा दर्द सुनाने आई हूँ।
चौटिल घायल जख्मी अपना जिस्म दिखाने आई हूँ।।
होकर अड़िंग खड़ी रहती हूँ आंधी और तुफानों में
कुदरत कहर ढ़हाती मुझपर देखके खड़ी मैदानों में
मेरे सहास के चर्चे चलते रहते सदा धनवानों में
मुझमें है वो हिम्मत जो ना मिल पाये मकानों में
मत मुझसे टकराना कोई यही बताने आई हूँ। - 1

मैं निर्धन की झोपड़ी ...

मुझको लोग झोपड़ी कहकर मेरा मजाक उड़ाते है
कसकर ऐसा तंज कसुता मुझको ओर चिढ़ाते है
देकर गहरे घाव मुझे मेरी चिंता ओर बढ़ाते है
मुझपर जाड़ सभी जलती नजरें खुब गढ़ाते है
कैसी भावना रखते मेरे प्रति जताने आई हूँ। - 2

मैं निर्धन की झोपड़ी ...

एक-एक जख्म कहानी कहता धनवानों के जुल्मों की
नही बयां कर सकती पीड़ा मैं अपने इन जख्मों की
चढ़ती आई बलि सदा मैं लोकतंत्र की रस्मों की
मुझपर लगी हुई पाबंदी अब भी भिन्न-भिन्न किस्मों की
जुल्म सितम करने वालों का सच बतलाने आई हूँ। - 3

मैं निर्धन की झोपड़ी ...

शहरों से गहरा नाता मेरा सम्बंध है सब गावों से
हाथ बाँधकर विवश करदी अपंग करी हूँ पावों से
तपती आई धुप के अन्दर वंछित रखीं हूँ छावों से
आज अन्तर्मन घायल है मेरा गहरे जख्मी घावों से
आज तुम्हारे सामने अपने आंसु बहाने आई हूँ। - 4

मैं निर्धन की झोपड़ी ...

चौटिल होकर कहरा रही हूँ अंखियों से जल बहता है
बहता हुआ हर एक-एक आंसु मेरी कहानी कहता है
मेरा जिस्म घायल होकर भी अन्तर्मन चुप रहता है
धनवानों के जुल्म सितम सब ढाँचा मेरा सहता है
दिखलाकर मेरे घाव ये गहरे तुम्हे रुलाने आई हूँ। - 5

मैं निर्धन की झोपड़ी ...

मेरी इस झरझर हालत के जिम्मेवार तुम ही तो हो
सबसे ज्यादा मुझपर करते अत्याचार तुम ही तो हो
जिसने की गद्दारी मुझसे वो गद्दार तुम ही तो हो
क्यो झुठे आंसु बहाते हो गुणहागार तुम ही तो हो
"विश्वबंधु"की कलम से अपना दुख लिखवाने आई हूँ। - 6

मैं निर्धन की झोपड़ी ...

प्रकाशित तारीख : 2020-03-16 05:44:43

प्रतिकृया दिनुहोस्