कोरोना से जंग: मानसिक स्वास्थ्य को आघात पहुंचा रही है महामारी

कोविड 19 के कारण विश्वव्यापी लॉकडाउन और बेकारी ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को गहरा आघात पहुंचाया है। उनमें झुंझलाहट, खीझ, अवसाद और हिंसा बढ़ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इससे निपटने के लिए व्यवस्था तैयार करने की अपील की है। 

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध से जन्मेंं भय और आशंका के आलोक में हुई। उन दिनों पूरा विश्व दो हिस्सों में बंटा हुआ था और सभी हथियारों के अंधे इस्तेमाल से थर-थर कांप रहे थे। ऐसे में यह जरूरत महसूस की गई कि एक ऐसे संगठन की स्थापना की जाए जो विश्व में शांति और भाईचारे की स्थापना के लिए दृढ़ संकल्प हो। जिससे आर्थिक और सामाजिक स्तर पर भी प्रगति की जा सके। संयुक्त राष्ट्र संघ नाम के इस विशाल संगठन ने अपने संकल्पों से इसे पूरा करने का प्रयास भी किया। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी संयुक्त राष्ट्र संघ की अनुषांगिक ईकाई है। जो सदस्य देशों के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर काम करता है।

खासतौर से नव स्वतंत्र विकासशील देशों के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन परिवार के किसी मुखिया की तरह काम करता है। फ्लू, टीबी,  पोलियो, कुपोषण आदि के उन्मूलन के लिए जो विशाल अभियान चले, उनमें विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रेरणा और आर्थिक मदद ही काम करती रही है। लगभग दो वर्ष पूर्व जब इबोला का कहर मध्य एशिया पर बरपा तब भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इससे बच्चों को बचाने के लिए वृहत अभियान चलाया।  
अब कोरोना के समय विश्व स्वास्थ्य संगठन पर जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ गई है। अभी तक यह धारणा रही है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की मदद की जरूरत केवल गरीब और विकासशील देशों को रही है, परंतु अब कोविड 19 के समय हालात बिल्कुल बदल गए हैं।

अमेरिका, इटली जैसे वे देश जिनकी स्वास्थ्य एवं चिकित्सा व्यवस्था अन्य देशों के लिए मानक मानी जाती है, वे भी कोरोना वायरस के चलते घुटनों पर आ गए हैं। चीन जैसे शक्ति शाली राष्ट्र को भी कोरोना के कारण अपने देश की नीतियों में बदलाव करना पड़ा।

प्रकाशित तारीख : 2020-04-28 11:57:53

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