क्या सवर्ण जातियों के लोग गरीब नहीं हो सकते?

जिस देश का संविधान धर्म निरपेक्ष होने का दावां करता है , उसी देश में धर्म और जाति के आधार पर आरक्षण संविधान की वैधता पर एक प्रश्न चिन्ह है। उक्त कथन कुछ लोगों को दलित विरोधी लग सकता है लेकिन एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र में आरक्षण का बस एक ही आधार होना चाहिए और वह है आर्थिक।

गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी क्या जाति और धर्म विशेष से जुड़ी समस्याएं हैं? क्या सवर्ण जातियों के लोग गरीब नहीं हो सकते? पहले शिक्षा में आरक्षण, फिर नौकरी में आरक्षण और फिर पदोन्नति में आरक्षण। ये अति पक्षपाती रवैया क्यों?

क्या सवर्ण जातियों में पैदा होने वाले मेधावी छात्रों ने कोई अपराध किया है? और सबसे बड़ा सवाल सवर्ण और दलित का ये भेद हो ही क्यों?

समानता के नाम पर जातिगत आरक्षण की बात असमानता की आग में घी डालने जैसी है जिस पर राजनैतिक रोटियां सेकी जाती है। जातिगत आरक्षण से आर्थिक असमानता कम नहीं होती बल्कि और भी बढ़ जाती है क्योंकि जो आरक्षण के वास्तविक हकदार हैं उन्हें आरक्षण का लाभ मिलता ही नहीं। पिछड़ी जातियों के सम्पन्न लोग ही ज्यादातर इसका फायदा उठाते हैं।

कैसा लगता होगा उस मेधावी छात्र को जिसका आरक्षण की वजह से चयन नहीं हो पाया ? उस से कम अंक लाने वाले उससे आगे बढ़ रहें हैं ये उसकी मेहनत और बुद्धिमता पर एक तमाचा है और साथ ही एक पक्षपात पूर्ण व्यवहार। और अगर वह मेधावी छात्र एक सवर्ण जाति के गरीब परिवार से हो तो उसका भविष्य तो निराशा के अन्धकार में ही डूब जायेगा।

राष्ट्र की उन्नति के लिए सबसे ज्यादा जरुरी है आर्थिक असमानता दूर करना, जातिगत भेदभाव को जड़ से मिटाना और प्रतिभाओं का सम्मान करना ताकि उनमें मेहनत का ज़ज्बा हमेशा बना रहे।

प्रकाशित तारीख : 2020-05-31 11:55:34

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