ग्रीष्म काल के ताप से, हुए सभी बेहाल !

बरस रहा अंगार है, अम्बर से दिन रैन !
बरसेगी जलधार कब ? आस लगाए नैन !!

सूख कूप पोखर गए, गए सूख नद नाल !
ग्रीष्म काल के ताप से, हुए सभी बेहाल !!

कृषक मेघ की आस में, इकटक रहे निहार !
उमड़ घुमड़ कर मेघ कब, छाएंगे इस पार !!

तकि तकि मारत बाण है, सूर्य निरंतर ताप !
घायल पृथ्वी होत है, करत रुदन संताप !!

जड़ चेतन व्याकुल सभी, व्याकुल सबकी आस !
घिर घिर आओ मेघ अब, सकल बुझाओ प्यास !!

जल की इक इक बूँद को, तरसे भू पर लोग !
बरसोगे कब बादरे, बनकर सुख संयोग ॥

आस लगाये नैन सब, देखत तुम्हरी ओर ।
बरसो रे अब बादरा, उमड़ घुमड़ घनघोर ॥

व्याकुल जड़ चेतन सभी, करते करुण पुकार !
रिमझिम बरसो मेघ ले, शीतल मंद बयार !!

विरहनि सी तपतीे धरा, छोड़े नित उच्छ्वास !
गगन प्रेम की बूँद से, त्वरित बुझाओ प्यास !!

दर्शन दो घनश्याम अब, प्रेम बूँद अभिसार !
मीरा सम तरसे धरा, करे नित्य उदगार !!

सुनने को तरसे सभी, मेघों का सुर तान !
सनन सनन पुरवा हवा, बूंदों का लय गान !!

टर्र टर्र बोली कोक की, झींगुर की झंकार !
केंकी बोल मयूर की, सुनने को तैयार !!

आओगे कब बादरे, उमड़ घुमड़ घनघोर !
नर्तन को तरसे सभी, नंदन वन के मोर !!

प्रकाशित तारीख : 2020-07-16 17:46:54

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