"पात्र कुपात्र देखकर ही दया दान करना चाहिए"

ये इसीलिए हो रहा है क्योंकि दुर्योधन की तरह आपने भी जहाँ पानी था उसको फर्श मान लिया

मेरे एक रिश्तेदार हैं । एक बार वह लोग ट्रेन से कहीं जा रहे थे । एक 8 वर्ष का लड़का उन्हें भीख माँगते दिखा । उस लड़के ने रोते हुए उनसे कहा कि उसके भैया भाभी ने उसे मार कर घर से बाहर निकाल दिया है। उसके माँ बाप का देहांत बहुत पहले ही हो चुका है। 

इन लोगों को बड़ी दया आयी और ये लोग उस लड़के को घर ले आये । उसे बिल्कुल अपने लड़के की तरह पालने लगे । वह उन्हीं के घर उन्हीं का बेटा बनकर रहने लगा । 

घर वाले समृद्ध थे तो कोई कमी नहीं कि उसके पालन पोषण में । वह बिल्कुल घर का एक सदस्य बन चुका था।


अब उसकी उम्र लगभग 17 वर्ष के आसपास हो चुकी थी । घर में शादी पड़ी । 

सभी रिश्तेदार इकट्ठे थे घर में । 
उस लड़के ने पता नहीं उनको क्या पिलाया या सुंघाया कि सबको सुलाकर घर में रखा Cash, गहने और अन्य कीमती सामान लेकर चंपत हो गया । 
जब सब लोग सोकर उठे तो दृश्य देखकर हैरान रह गए । 
लेकिन तब तक तो सब लुट चुका था ।

कलियुग की नेकी ब्रह्महत्या के समान है ।

खैर उस लड़के की ग़लती नहीं थी , ग़लती इन्हीं की ही थी ।

तुलसीदास जी ने कहा है :- 
काहू न कोऊ सुख दुख दाता ।
निज कृत कर्म भोग सब भ्राता ।।

ग़लती इनकी यह थी कि इन्होंने शास्त्र की यह बात मान ली कि दूसरों पर उपकार करो लेकिन शास्त्र की यह बात नहीं मानी कि पात्र या कुपात्र देखकर ही इस विषय का चुनाव करें । 

आजकल यही होता है लोग ऊपर ऊपर से पढ़कर शास्त्रों की बातों का अनुसरण करते हैं लेकिन उसके terms and conditions, नियम व शर्तों को बिल्कुल अनदेखा कर देते हैं।

एक व्यक्ति गोलियों से बचकर आपके घर में शरण लेने के लिए बोल रहा है । आपने कहा कि शास्त्र ने कहा है :- पर उपकार वचन मन काया , संत सुभाव सहज खगराया ।। 

यह सोचकर आपने उसको शरण दे दी । 

बाद में पता लगा कि उसको शरण देने के जुर्म में पोलिस ने आपको जेल भेज दिया है । क्यों ? क्योंकि जिसको शरण दिया गया वह एक आतंकवादी था और वह सिविल कपड़ों में पीछा कर रहे पोलिस या आर्मी से भाग रहा था ।

तो इसीलिए शास्त्रों ने हर अपने वाक्यों के आगे और पीछे terms & conditions लगा रखा है ।

लोग दान देते हैं । बिना पात्र और कुपात्र समझ कर दान दिया जा रहा है । 

एक आदमी भूखा था , अशक्त था । आपने उस पर दया कर के उसे भोजन करवा दिया । भोजन से उसने शक्ति प्राप्त की और एक लड़की का उसने बलात्कार कर दिया । उस लड़की ने ग्लानि से आत्महत्या कर ली और फिर उसके परिवार वालों ने भी आत्महत्या कर ली ।

अब उन हत्याओं का दोष आपको बराबर लगेगा । फिर रोते हुए कहते हैं कि हमने तो किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा था फिर हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है ?

ये इसीलिए हो रहा है क्योंकि दुर्योधन की तरह आपने भी जहाँ पानी था उसको फर्श मान लिया ।

ऐसे नहीं चलेगा कि हमें तो नहीं पता था । नहीं पता था तो पता करो । ऑस्ट्रेलिया जायेंगे और ऑस्ट्रेलिया का कोई law तोड़ेंगे तो पोलिस आपको पकड़ कर जेल में डाल देगी। यह नहीं सुनेगी कि आपको नहीं पता था । पता नहीं था तो क्यों नहीं आने से पहले पता किया ?? यह दलील नहीं चलेगी।

ज़हर या विष को आप पियेंगे तो मरेंगे । विष यह नहीं देखेगा कि इस व्यक्ति को नहीं पता था तो मैं इस पर असर न करूँ। जब इसे पता लग जायेगा तभी मैं असर करूँगा ।

इसीलिए हमारे शास्त्रों में यह लिखा गया है कि शास्त्रों के हर वाक्य या सिद्धांत के पीछे का बैकग्राउंड और उसके नियम व शर्तें जान लें कि वह क्यों, किसके लिए , कब , किसलिए कहा गया है ।

यही बिना जाने और अबाबील की तरह सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए लोग महती हानि मोल लेते हैं । 

किसी की सहायता करने से पहले उसके विषय में जानिए कि वह कौन से गुण प्रधान वाला व्यक्ति है ? वह सात्विक बुद्धि का है या तामसिक बुद्धि का है या राजसिक बुद्धि वाला है या गुणातीत महापुरुष है ?

किस उद्देश्य की पूर्ति हेतु उस धन या दान उपयोग में लाया जा रहा है , किसके लिए , क्यों , कब , कैसे ? इन सब प्रश्नों का उत्तर जाने बगैर जो करेगा वह अपनी महती हानि करेगा ।

लेकिन शास्त्रों ने देखा कि यह सब पता लगाना आसान नहीं है तो उसने एक simple formula दे दिया कि ब्राह्मणों को या सात्विक बुद्धि प्रधान वाले व्यक्ति को दान दो । 

ध्यान दीजिए यहाँ आजकल के ब्राह्मणों की बात नहीं हो रही है । वह ब्राह्मण जो मन , कर्म , बुद्धि और आचार से ब्राह्मण हो । जो भक्त हों , जिनकी बुद्धि भगवदीय हो । 

आतंकवादी वाली बुद्धि को नाभिकीय ऊर्जा के बारे में बतायेंगे तो वह destruction के लिए ही उसका प्रयोग करेगा । 
आप भी मरेंगे । तब यह कहने से काम नहीं चलेगा कि "शिक्षा का दान महादान है" !

आजकल के Sirname वाले ब्राह्मण नहीं जो अपने दोस्तों के साथ मांस मदिरा , जुवा , शराब , कबाब , सुंदरी सबका सेवन कर रहे हों पर पीछे धोवन शुक्ल लगाकर या 10 रुपये का काला चश्मा पहनकर और बीस रुपये का भगवा गमछा लपेटकर अपने आप को परशुराम का वंशज बताते हों । 

बल्कि अगर आपको संत रैदास जी जैसे चमार भी मिल जाते हैं तो ऐसे लाख कबाबी शराबी ब्राह्मणों से अच्छे रैदास जी जैसे भक्तों की सेवा या उन्हें दान करने से असंख्य गुणा फायदा होगा ।

इसीलिए शास्त्रों में लिखा है कि ब्राह्मणों को दान दें । क्योंकि इनकी बुद्धि तप , नियम संयम के कारण सात्विक होती है और इनको दान करने से यह जो भी धन का प्रयोग करेंगे वह एकमात्र सात्विक जगह ही करेंगे जैसे शास्त्रों व धर्म का संरक्षण या दूसरों को सही मार्ग पर ही प्रेरित करेंगे जिससे कई लोग पापाचार से बचे रहेंगे ।

ऐसे सात्विक व्यक्तियों के हाथों से कुछ भी कोई ग्रहण करेगा या करता है तो पापी व्यक्ति की मलिन बुद्धि भी परिवर्तित होती है । किसी ब्राह्मण या सात्विक व्यक्ति के हाथों खाना या उसके घर भोजन करने से भी घोर से घोर पापी दूषित व्यक्ति की बुद्धि भी सुधरने लगती है।

भोजन किसके घर , कैसे व्यक्ति के घर , और किस स्थान पर किया जा रहा है इसका बुद्धि या मन मस्तिष्क पर विशेष प्रभाव होता है । 
भोजन से सम्बंधित Terms & Conditions या भोजन विज्ञान के ऊपर पोस्ट बाद में डालूँगा अन्यथा बहुत लंबा हो जाएगा ।

इसीलिए आपने देखा होगा लोग संतो या महापुरुषों के हाथों से प्रसाद ग्रहण करते हैं । उनसे निवेदन किया जाता है कि एक बार अपना हाथ उस पर अवश्य लगा दें। क्योंकि जो सात्विक परमाणु उनके पास है वह उस वस्तु द्वारा उनके पास आएगी ।

संत महापुरुष या कोई सात्विक व्यक्ति अगर दान भी करते हैं तो पापात्मा व्यक्ति तक का अंतःकरण बदल जाता है उस दान से ।

इसीलिए शास्त्रों ने नियम कर दिया था कि ब्राह्मणों को दान दे ।

पहले राजा महाराजाओं का एक नियम होता था कि वह ब्राह्मणों को नियमित दान देते थे । 

वह दान की वस्तु जैसे ही उक्त सात्विक व्यक्ति या संत महापुरुष के संसर्ग में आता था तो वह स्वयमेव ही शुद्ध हो जाता था । शुद्ध Personality द्वारा जो दान किया जाता था उसका प्रभाव अपरिमेय होता था । जिससे प्रजा जन की बुद्धि शुद्ध होकर सात्विकता की ओर लगकर राजा एवं प्रजा दोनों के लिए शुभ व मंगलकारी बन जाता था ।

पर आज तो जिसको देखो कहीं भी खा लेता है , किसी का भी खा लेता है , कुछ भी खा लेता है , कैसे भी खा लेता है । 
इसलिए मनुष्य आज हर संसाधन समृद्ध होने के बावजूद भी दुखी और अशांत है और यही पहले लोग भोजन का विज्ञान समझते हुए उसका पालन करते थे तब भी एक चटाई पाकर भी आनंदमय और मानसिक समृद्ध रहते थे ।

इसीलिए कुछ भी करने से पहले उसके गूढ़ विज्ञान या Terms & Conditions को अवश्य समझ लें अन्यथा दुःख और रोने के अलावा कुछ भी शेष नहीं बचेगा ।

प्रकाशित तारीख : 2020-02-17 04:56:53

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