बंद करो नौटंकी

वसन्त लाेहनी



जिंदगी वहीं पर हैं
जहां से मैं गुजरा था
दर असल 
और खिसक गया

कलाकारिता बदल गया
उसकी सूरत बदल गया
लेकिन हकीकत हूबहू वही हैं
बादल की स्वरूप बदल गए
लेकिन आकाश ढका हुआ है
भाषण बदल गया
शैली बदल गई 
लेकिन नजरिया वही हैं
बादशाह निकल गए
लेकिन दरबार वही हैं
इस अदली बदली में
महान नौटंकी वाले बादशाह
हमें मिले हैं
जो हमें थमा रहे हैं
विकास के लहर
और एलान करते हैं
तुम अब समृद्ध बन गए हो
जो तुम कभी नहीं थे

आगे देखता हूं
कुछ नहीं दिखाई देता हैं
कोहरा से ढका हुआ हैं
अपने आपको देखता हूं
ढका हुआ तन
पचास प्रतिशत कपड़ा हैं
बाकी खुद तो मैं हूं
थमा रहे हैं हमें 
मेरे नाम पर लिखे तमसुक

मेरे खुसिया सरहद पार बेचकर
राज करने वाले नंगे बादशाह 
कब तक नौटंकी चलाते हो
बहुत हुआ! बहुत हुआ!!
बन्द करो यह नौटंकी को अब
कब तक उपाय ढूंढते रहोगे
मुझे बर्बाद करके
अपने लम्हे को लंबा करने का

प्रकाशित तारीख : 2021-04-11 17:00:00

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