आत्महत्या लोग क्यों करते हैं ?

इसका उत्तर जानने के लिए कुछ अकाट्य सिद्धांत जानने आवश्यक हैं । पहला यह कि विश्व का प्रत्येक जीव (वायरस से लेकर ब्रह्मा तक) एकमात्र आनंद चाहता है और उसके सिवा कुछ अन्यत्र नहीं चाह सकता । इस आनंद के लिए विश्व का प्रत्येक जीव प्रत्येक क्षण कार्य करता है और एकमात्र इसी आनंद के लिए ।

वह उठा, बैठा, सोया, हँसा, रोया, चला या पलकें भी झपकाई, वह केवल आनंद पाने के लिए । वह इसलिए पलकें तक झपकाता है क्योंकि अगर वह नहीं झपकायेगा तो उसकी आँखों को दुःख मिलेगा और उस दुख को न पाने के लिए वह झपकायेगा ।

कोई कुछ भी करेगा , किसी भी उद्देश्य हेतु, वह एकमात्र सुख, आनंद या मज़ा या लुत्फ़ पाने के लिए ही करता है । Electron तब तक चक्कर काटते रहेंगे जब तक वह stable नहीं हो जाते । Ionic reactions तब तक होते रहेंगे जब तक वह कोई stable atom, molecule या element नहीं बना लेते ।

मतलब सबको stability या आनंद या शांति चाहिए जिसको पाने के लिये निरंतर कर्म करते हैं।

क्यों ?

क्योंकि " ममैवांशो जीव लोके जीव भूतः सनातनः "

ईश्वर अंश जीव अविनाशी ।
चेतन अमल सहज सुखराशी ।

क्योंकि जीव या आत्मा आनंदस्वरूप (सतचित आनंद) ईश्वर का अंश है और अंश अपने अंशी से स्वभावत: प्यार करता है या वही चाहता है । जैसे प्रत्येक नदी का लक्ष्य अंततः सागर ही है ।

अब दूसरा सिद्धांत :- कोई भी जीव चाहकर भी गलत कार्य नहीं कर सकता ।

 कैसे ?

देखिये कोई भी जीव कोई कार्य तभी करता है जब तक उसका मन मस्तिष्क उससे यह विश्वास न दिला दे कि अमुक कार्य उसके लिए सही है , गलत नहीं ।

तो हर व्यक्ति सही कार्य ही करता है (लेकिन अपनी बुद्धि के अनुरूप)

चाहे कोई चोरी करे , डकैती करे , हत्या करे , बलात्कार करे, भ्रष्टाचार करे या कुछ भी करे , वह यह सब कार्य तभी करता है जब उसका मन और उसकी बुद्धि उसको यह निश्चय करवा देती है कि अमुक कार्य से उसको फायदा होगा या इसके अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है । (उसकी बुद्धि के अनुसार)

तो यह दो सिद्धांत याद रखिये ।

अब आगे चलते हैं ।

विश्व का कोई भी जीव एक क्षण को भी अकर्मा नहीं रह सकता । वह प्रत्येक क्षण कार्य करता रहेगा । सोते वक्त भी वह स्वप्न के माध्यम से कार्य करता रहेगा ।

उसी आनंद की प्राप्ति के लिए लोग कार्य करते हैं , संसाधन जुटाते हैं । और सबके लिए सबका आनंद अलग अलग है । कोई धन में आनंद ढूंढ रहा है, कोई स्त्री में, कोई पुरुष में, कोई यश में, कोई समृद्धि में , कोई भरा पुरा सम्राज्य छोड़कर भाग जाता है एक लड़की या लड़के के लिए ,कोई पुत्र में , कोई दारू में ,कोई शराब में कोई किसी मे । (अपनी अपनी बुद्धि व संस्कार के अनुसार)

लेकिन आनंद इन सब वस्तुओं में है ही नहीं तो मिलेगा क्या ? इसीलिए महत्वाकांक्षा बढ़ती जाती है कि चलो इसमें आनंद नहीं लेकिन उसमें होगा । मैनेजर बनने में आनंद नहीं मिला तो हो सकता है जनरल मैनेजर बनने पर हो ,हो सकता है अम्बानी बनने में हो ,हो सकता है बिल गेट्स बनने में हो ,हो सकता है इंद्र बनने में हो , हो सकता है ब्रह्मा का पद मिलने में हो।

लेकिन आनंद नहीं मिलता क्योंकि इनमें आनंद है ही नहीं।

तो अब मूल बात पर आते हैं ।

जब लोग भौतिक वस्तुओं में सुख या आनंद ढूँढ कर जंजालों में फँसते चले जाते हैं तो वह अपना धन, प्रतिष्ठा , यश या कोई भी ऐसी भौतिक अवशेष को बचाने के लिए वह घोर निराशा में आ जाते हैं । बाहरी दबाव , बाहरी आशाओं के pressure में आकर वह अवसाद की स्थिति में आ जाते हैं । उसी अवसाद को दुःख कहते हैं ।

इसी दुःख निवृत्ति के लिए , कि इस दुख से मुझे छुटकारा मिल जाये , मुझे आनंद मिल जाये , मेरे सारे दुःखों का अंत हो जाये , बस इसी को हटाने के लिए व्यक्ति आत्महत्या करता है ।

उसे लगता है ये जो मानसिक दुःख मुझे मिल रहा है , इससे छुटकारा मिल जाय या यह मुझे नहीं मिलेगा ।

इसे आत्महत्या नहीं , उसकी भाषा में इसे उसके दुःख की हत्या या पीड़ा की हत्या कहिए जिससे छुटकारा प्राप्त कर वह आनंद प्राप्त करना चाहता है ।
उसकी बुद्धि कहती है कि यही मार्ग शेष है और सही है इस पीड़ा से बचने के लिए । ( ये एकमात्र उसके संस्कार , धर्म और अध्यात्म की विमुखता के कारण होता है )

लेकिन जब कोई आत्महत्या करता है , तो वह क्षण जब प्राण शरीर से निकल रहे होते हैं तब उसे लगता है कि ओह्ह यह तो और दुखदायी है और अब कोई हमें आकर बचा ले ।

इस कारण वह 10 से 15 मिनट तक जद्दोजहद करता है अपने को बचाने के लिए । क्यों ?

क्योंकि जिस अथाह पीड़ा को वह आत्महत्या के वक्त झेल रहा होता है , वह उससे छुटकारा पाना चाहता है । इसीलिए प्रत्येक व्यक्ति तड़पता है , छटपटाता है कि कोई आकर बचा ले ,मुझे इस घोर पीड़ा से छुटकारा दिलवा दे ।

लेकिन अंततः तीर कमान से निकल चुका होता है ।

अगर कोई आत्महत्या कर रहा हो, जल रहा हो, पानी में डूब रहा हो या फांसी पर लटक रहा हो, उसको बचा कर देखिये ,वह आपको पकड़ लेगा और आशा करेगा कि आप उसे उसकी उस पीड़ा से बचा लें । उसको बचाने के बाद आप उसे दुबारा कहिए कि फिर से जल जाओ या ऐसा कुछ कर लो तो वह नहीं करेगा क्योंकि उसे उस पीड़ा की अनुभूति हो गयी होती है ।

अरे चींटी भी मारेंगे तो वह भी भागती है क्योंकि वह भी पीड़ा नहीं आनंद चाहती है ।

हाँ कुछ लोग होते हैं जिनको वह पीड़ा , वह दुःख विस्मृत हो जाता है तो वह दुबारा आत्महत्या की चेष्टा करते हैं ।

तो अंततः यह सिद्ध हो गया कि कोई भी व्यक्ति आत्महत्या करता है तो वह एकमात्र दुःख निवृत्ति और आनंद प्राप्ति के लिए ही करता है (जो कि उसकी बुद्धि के अनुसार)

लेकिन अगर किसी व्यक्ति का धर्म और आध्यात्म पुष्ट है तो वह इन सब भौतिक सुखों को धूल समझ कर आगे बढ़ता है क्योंकि उसका सिद्धांत पुष्ट है कि इनमें आनंद नहीं है और सब क्षणिक है ।
सुख या दुख सब मन के द्वारा बनाये गए तत्व हैं ।
सुख या दुख क्षणिक हैं ।

ये आते जाते रहते हैं जैसे दिन और रात आते हैं ।
जब आंतरिक भगवादानंद मिलने लगता है तो आप श्मशान में भी जहाँ रुदाली हो रही होती है ,वहाँ भी खुश की अवस्था मे रहते हैं ।

जब यही मन दुःखी रहता है तब आप बड़े से बड़े DJ या नाच गाने वाली पार्टी में भी अंदर अंदर रो रहे होते हैं , भले ही आप बाहर चेहरे पे खूब मुस्कुराहट ला रहे हों ।

क्योंकि धर्म और अध्यात्म ही आपको सही मार्गदर्शन देता है कि क्या सही है क्या गलत है । किस स्थिति में क्या करना है या क्या नहीं करना है ।
सुख और आनंद कहाँ हैं ।

यह ध्यान , भजन, मंत्र जाप , meditation, भगवान के साकार रूप के लीला , गुण , धाम इत्यादि का मनन चिंतन आपके अंदर ऐसे Biohormones का निर्माण करता है जो आपको आनंद प्रदान करती है ।
यही आध्यात्म शक्ति ,यही धार्मिक कथायें , यही आध्यात्मिक सिद्धांत आपको विकट से विकट परिस्थितियों से निकाल ले जाती हैं ।

जिनके पास धर्म या आध्यात्म का आलम्बन नहीं होता , वह अवसाद, depression और अंत में शराब, cigarrette, drugs की चपेट में आकर आत्महत्या की ओर प्रेरित हो जाते हैं ।

ये धर्म वो वाला धर्म मत समझियेगा जो हिन्दू, मुस्लिम, सिख ईसाई वाला है । ये धर्म नहीं है । यह विचार है मात्र ।

धर्म इन सबसे बिल्कुल अलग होता है ।
अपने बच्चों को नैतिक शिक्षा दीजिये बजाय कि धन पशु बनाने से ।
अपने शरीर को सुख या बलिष्ठ या सुंदर बनाने वाले संसाधन की बजाय मानसिक चेतना या आत्मिक उन्नति , विकास पर ध्यान केंद्रित करिये , इसको उन्नत करने के बाद सारी दुनिया आपकी मुट्ठी में होगी ।

क्योंकि :-
चित्तमेव हि संसारः ।

मनमेव हि संसारः ।

प्रकाशित तारीख : 2020-06-15 11:46:57

प्रतिकृया दिनुहोस्