हे ! डम डम डमरू बजाओ रे...

हे ! डम डम डमरू बजाओ रे ।
सोए जो चिर निद्रा में हैं ,
तुम उनको आज जगाओ रे ।।
अरे हे ! शंखनाद करवाओ रे ।।
करवाओ रे ।। करवाओ रे ।।

* सोते सोते युग बीत गया ।
घट धर्म स्वत्व का रीत गया ।
जो धर्म ध्वजा का रक्षक था
वह भी शत्रु से भीत गया ।
सुख स्वप्नलोक को दे विराम ,
हे आर्यवीर उठ जाओ रे ।
हे ! डम डम डमरू बजाओ रे ।।

* उठ उठ अब मत कर तू विलाप ।
अब छोड़ के सारे बहु प्रलाप ।
धधका कर ज्वाला सीने में ,
दिखला दे तू अपना प्रताप ।।
रौरव कर के नभमण्डल से ,
तुम उल्का बन गिर जाओ रे ।
हे ! डम डम डमरू बजाओ रे ।।

* करती नित भू यह हाहाकार
पीड़ा से रोती जार जार
आशा से सुत को देख देख
नित करती जाती यह पुकार ।
अब परशु धार बन परशुराम
नर पशु से मुक्त कराओ रे ।
हे ! डम डम डमरू बजाओ रे ।।

* तुम बरछी हो , तुम हो कटार ।
तुम हो मुग्दर , तुम हो कुठार ।
जो रक्षा हित हैं बने हुए ,
तुम धर्म देश के शस्त्रागार ।
तुम प्रलयंकारी के त्रिशूल
बन शत्रु पर गिर जाओ रे ।।
हे ! डम डम डमरू बजाओ रे ।।

* तुम हो प्रचंड विकराल काल ।
तुम ही हनुमत के तनु विशाल ।
कर छिन्न भिन्न दिति सेना को ,
धारण कर लो अरि मुंड माल ।।
दशकंध है करता अट्टहास ,
अब इसकी लंक जलाओ रे ।
हे ! डम डम डमरू बजाओ रे ।।

* तुम राम के हो अक्षय तूणीर ।
तुम ही सौमित्र के तिक्ष तीर ।
अंगद के हो तुम अडिग पाँव,
तुम महावीर तुम हो प्रवीर ।।
तुम जाम्बवन्त की मुष्टिक बन ,
अरि दाढ़ों से टकराओ रे ।
हे ! डम डम डमरू बजाओ रे ।।

* तुम महारुद्र के महा अंश ,
तुम शेषनाग के अतुल दंश ,
जो कर दे पल में इक प्रलय ,
उस महावीर के उच्च वंश ,
अब संधि वचन सब छोड़ छाड़,
तुम विध्वंसक बन जाओ रे ।
हे ! डम डम डमरू बजाओ रे ।।

* पाँच से दस औ दस से बीस ।
बढ़ता नित ज्यों है कटे सीस ।
उस रक्तबीज का कर दमन
अपने दांतों से पीस पीस ।
कर रक्तपान भर खप्पर में
अब रौद्र रूप दिखलाओ रे ।
हे ! डम डम डमरू बजाओ रे ।।

* तुम कृष्ण के गीता की हो धुन ।
तुम ही गीता ज्ञानी अर्जुन।
रक्षा हित तुम धर्म ध्वजा की
वरण करो अब युद्ध शकुन ।
कर रक्त दीप्ति निज नेत्रों से
तुम अग्निशिखा बरसाओ रे ।
हे ! डम डम डमरू बजाओ रे ।।

* तुम हो पिनाक, तुम गाण्डीव
शारंग धनुष का दृढ़ अतीव
श्रीराम के हाथों में शोभित
कोदंड धनुष का बल सजीव
जो भेद दे अरि की छाती को ,
अब ऐसा बाण चलाओ रे ।
हे ! डम डम डमरू बजाओ रे ।।

* घेरे नित आते चंड मुंड ।
महिषासुर बन कर असुर झुंड ।
करने को मर्दन दुष्टों का ,
अब कूद पड़ो इस युद्ध कुंड ।
उस महाशक्ति को धारण कर ,
काली चंडी बन जाओ रे ।
हे ! डम डम डमरू बजाओ रे ।

* तुम चन्द्रहास की हो चम चम ,
तुम पाशुपात की धार विषम ,
भवरेन्द्रू चक्र की गर गर ले ,
बोलो हर महादेव बम बम ।
तुम खोल तीसरा नेत्र ज्वलित
विरुपाक्ष रुद्र बन जाओ रे ।
हे ! डम डम डमरू बजाओ रे ।।

* चहुँ दिशि से करता तम प्रहार ।
खल वेश बदल कर बहु प्रकार ।
भय से थर थर कम्पित जन पर
नित करता जाता अत्याचार ।
इस अंध तिमिर को ध्वंसित कर ,
तुम "श्वेत" चन्द्र बन जाओ रे ।
हे ! डम डम डमरू बजाओ रे ।।

प्रकाशित तारीख : 2020-06-17 14:59:16

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