दलाई लामा को पंडित नेहरू के नाम का सम्मान देकर नेहरू की गलती को सुधारा जाए

एनएस वेंकटरमन

दलाई लामा 85 साल के हो चुके हैं, जिसमें से 60 साल उन्होंने भारत में गुजारे हैं. 1950 के दशक में जब चीन ने हजारों मासूम तिब्बतियों का नरसंहार करके तिब्बत पर कब्जा कर लिया था, दलाई लामा को भारत में शरणार्थी की तरह आना पड़ा था. अब वह 85 साल के हो चुके हैं, जिसमें से 60 साल उन्होंने भारत में गुजारे हैं. वह दशकों से प्रेम, सदभावना और शांति के उपदेश दे रहे हैं. इन्हीं प्रयासों के चलते उन्हें शांति का नोबेल पुरस्कार भी मिल चुका है. 

निश्चित ही भारत भी उनकी यहां उपस्थिति से लाभान्वित होता रहा है, क्योंकि वह किसी के प्रति घृणा ना रखने और दया जैसे गुणों के प्रतीक हैं. बहुत से भारतीय उनके विचारों और भाषणों से प्रेरणा लेते हैं और उन्हें संस्कृति का अवतार मानते हैं. दलाई लामा दुनिया के सबसे बड़े बौद्ध धर्मगुरु हैं.

खासतौर पर सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात ये है कि दशकों से चीन दलाई लामा को बुरा-भला कह रहा है, फिर भी उन्होंने आज तक चीन के खिलाफ कभी भी, कुछ भी कठोरता से नहीं कहा. खास बात है कि वह चीन को अपना दुश्मन तक नहीं मानते. उसके अनैतिक और आक्रामक रवैये के बावजूद और ये एक ऐसा अनोखा गुण है, जिसके चलते उनकी तारीफ एक सर्वोत्कृष्ट विश्व नेता के तौर पर की ही जानी चाहिए.

जबकि भारत ने दलाई लामा और तिब्बतियों को शरणार्थियों का स्टेटस दिया है. दलाई लामा ने भारत सरकार के निर्देशों का पालन करते हुए किसी भी राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा ना लेते हुए उसे कड़ाई से बरकरार भी रखा है और ऐसा जान नहीं पड़ता कि कभी भारत सरकार ने दलाई लामा के भारत में प्रवास के इस पहलू को दशकों के दौरान कभी मान्यता दी हो.

प्रकाशित तारीख : 2020-07-22 11:25:54

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