दिल्ली में रैपिड टेस्ट पर बढ़ती निर्भरता को लेकर चिंता

दिल्ली में कोरोना वायरस से लड़ने की रणनीति के जिस पहलू को लेकर जानकार चिंता जता रहे थे अब उसी मुद्दे को दिल्ली हाई कोर्ट ने रेखांकित किया है. अदालत ने दिल्ली सरकार से पूछा है कि शहर की लैबों में जितने आरटी-पीसीआर टेस्ट करने की क्षमता है उससे कहीं कम टेस्ट क्यों हो रहे हैं? अदालत ने यह भी जानना चाहा है कि दिल्ली सरकार की आरटी-पीसीआर टेस्ट की जगह रैपिड टेस्ट पर निर्भरता क्यों बढ़ गई है?

दिल्ली हाई कोर्ट में इन दिनों दिल्ली में होने वाले टेस्ट की संख्या बढ़ाने और लैबों और अस्पतालों से टेस्ट के नतीजे और जल्दी निकलवाने के संबंध में एक याचिका पर सुनवाई चल रही है. सुनवाई के दौरान सामने आया कि दिल्ली में कोविड-19 की जांच के लिए अधिकृत 54 निजी और सरकारी लैब हैं, जिनमें रोज 11,000 आरटी-पीसीआर टेस्ट करने की क्षमता है, लेकिन असल में इनमें प्रतिदिन सिर्फ 6,000 या उस से भी कम टेस्ट हो रहे हैं।

वहीं, दिल्ली में आरटी-पीसीआर टेस्ट से ढाई गुना से भी ज्यादा रैपिड टेस्ट हो रहे हैं. 15 जुलाई से 23 जुलाई के बीच, शहर में जहां सिर्फ 47,276 आरटी-पीसीआर टेस्ट हुए, वहीं रैपिड टेस्ट की संख्या 1,21,950 रही. अदालत ने कहा, "आरटी-पीसीआर टेस्ट की सिर्फ 50 प्रतिशत क्षमता का इस्तेमाल हो रहा है, जिसका मतलब है कि सारा ध्यान रैपिड टेस्ट करने पर है, जबकि आरटी-पीसीआर सबसे भरोसेमंद टेस्ट होता है।"

Coronavirus in Indien (Getty Images/Y. Nazir)

कोरोना वायरस के संक्रमण की जांच करने के लिए एक स्वास्थ्यकर्मी मोबाइल वैन के अंदर से एक महिला का सैंपल लेते हुए।

क्या होता है रैपिड टेस्ट

जून में आईसीएमआर ने रैपिड ऐंटीजेन टेस्ट को स्वीकृति दी थी जिसे करने के लिए नाक से लिए गए सैंपल को लैब तक ले जाने की जरूरत नहीं होती. जहां भी सैंपल लिया जाता है वहीं पर जांच की जाती है और 15 मिनट से 30 मिनट में नतीजा सामने आ जाता है. अभी तक जो टेस्ट किए जा रहे थे उन्हें आरटी-पीसीआर टेस्ट कहते हैं और इनमें नतीजा सामने आने में तीन से पांच घंटों तक का समय लगता है. इसके अलावा सैंपल को लैब तक पहुंचाने में भी समय लगता है, जिसकी वजह से नतीजे सामने आने में कुल मिलाकर कम से कम एक पूरा दिन लग जाता है।

रैपिड टेस्ट की किट से लिया हुआ सैंपल सिर्फ एक घंटे तक स्थिर रहता है, इसीलिए सैंपल ले लेने के एक घंटे के अंदर जांच कर लेनी होती है. आईसीएमआर ने निर्देश दिए थे कि कंटेनमेंट इलाकों और हॉटस्पॉट इलाकों में इस किट के जरिए हर उस व्यक्ति की जांच की जानी चाहिए जो इन्फ्लुएंजा जैसे लक्षण दिखा रहा हो. इसके अलावा उनकी भी जांच होनी चाहिए जिनमें कोई लक्षण ना हों लेकिन वो संक्रमित व्यक्तियों के सीधे संपर्क में आए हों और उन्हें डायबिटीज, हाइपरटेंशन इत्यादि जैसी जैसी कोई और बीमारी भी हो।

रैपिड टेस्ट कई बार गलत नतीजे देता है, इसलिए आईसीएमआर ने कहा था कि जहां भी इस टेस्ट का इस्तेमाल किया जाए वहां नतीजा कोविड-19 पॉजिटिव आने की सूरत में व्यक्ति को कोरोना संक्रमित मान लिया जाए और अगर नतीजा नेगेटिव आए तो आरटी-पीसीआर टेस्ट भी किया जाए ताकि संक्रमण के ना होने की पुष्टि हो सके. लेकिन दिल्ली सरकार रैपिड टेस्ट के नतीजे नेगेटिव आने पर संक्रमण के ना होने की पुष्टि करने के लिए आरटी-पीसीआर टेस्ट तभी कर रही है जब व्यक्ति में कोई लक्षण भी हो।

Indien Coronavirus-Ausbruch (Reuters/A. Fadnavis)

दिल्ली में एक स्वास्थ्यकर्मी एक जांच-केंद्र पर एक महिला का सैंपल लेते हुए।

घनी आबादी वाले इलाकों में ज्यादा संक्रमण

दिल्ली हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान आईसीएमआर की एक वैज्ञानिक ने इस बात की पुष्टि की कि संस्था ने कभी आरटी-पीसीआर टेस्ट की जगह रैपिड टेस्ट करने की अनुशंसा नहीं की. वैज्ञानिक ने कहा कि आइसीएमआर के निर्देश यही हैं रैपिड टेस्ट कन्टेनमेंट इलाकों, हॉटस्पॉट और अस्पतालों इत्यादि में ही किए जाएं. सुनवाई के दौरान यह भी निकल कर आया कि दिल्ली सरकार गंभीर सांस की बीमारी (एसएआरआई) के मरीजों का भी रैपिड टेस्ट कर रही है, जब कि आईसीएमआर की वैज्ञानिक के अनुसार एसएआरआई मरीजों का सीधा आरटी-पीसीआर टेस्ट करना चाहिए, ना कि रैपिड टेस्ट।

इसके अलावा अदालत ने नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (एनसीडीसी) द्वारा दिल्ली में कराए गए सेरोलॉजिकल टेस्ट के प्राथमिक नतीजों को भी संज्ञान में लिया जिनमें यह निकल कर आया था कि दिल्ली में लगभग 22 प्रतिशत लोगों को कोरोना वायरस का संक्रमण हो चुका है लेकिन उन्हें इस बात के जानकारी नहीं है. एनसीडीसी ने यह भी कहा कि दिल्ली में घनी आबादी वाले जिलों में संक्रमण के ज्यादा मामले पाए गए हैं और ऐसे इलाकों में एकदम सही स्थिति जानने के लिए और ज्यादा आरटीपीसीआर टेस्ट करना ही ठीक होगा।

सुनवाई के दौरान सामने आए सभी तथ्यों से यह स्पष्ट हो गया कि दिल्ली सरकार जांच करने में आईसीएमआर के दिशा-निर्देशों का पालन करने की जगह उनका अपने हिसाब से अर्थ लगा कर जांच कर रही है. अदालत ने सरकार को हिदायत दी है कि वो ऐसा ना करे और आईसीएमआर के दिशा-निर्देशों का पालन करे।

प्रकाशित तारीख : 2020-07-28 18:02:48

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