नेपाल के लिए फासले का ख्याल रखना क्यों जरूरी है

मनजीव सिंह पुरी

हाल में नेपाल के प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने असली अयोध्या के भारतीय सीमा के पास नेपाल के थोरी गांव में होने का ऐलान किया. उन्होंने यह भी कहा कि नेपाल सांस्कृतिक अतिक्रमण का शिकार था. उनकी दलील थी कि भारत की अयोध्या और नेपाल के जनकपुर की दूरी प्राचीन काल में इतनी ज्यादा रही होगी कि कोई राजकुमार इसे तय नहीं कर सकता था, अपनी दुल्हन के लिए भी नहीं! रिपोर्ट्स बताती हैं कि उनके इस विश्लेषण के आधार पर नेपाल का पुरातत्व विभाग थोरी में खुदाई शुरू कर सकता है.

यह ताजातरीन संशोधनवाद प्रधानमंत्री ओली की जमीन हड़पने की उस कोशिश के फौरन बाद आया, जिसमें उन्होंने उत्तराखंड की करीब 325 किमी भारतीय जमीन नेपाल के नक्शे में शामिल कर ली. इस आशय का संविधान संशोधन नेपाल के सीमांकित नक्शों सहित देश के राज्यचिन्हों में झलकता है. इसमें जो इलाका जोड़ा गया है, उसका इस्तेमाल भारतीय यात्री काफी पहले से कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रा के लिए करते आए हैं.

नक्शे पर इस चढ़ाई का समर्थन नहीं किया जा सकता. यह नेपाल के राष्ट्रीय प्रतीकचिह्न से सजे कागजों पर उसकी चिट्ठी-पत्री लेना भी मुश्किल बना देता है. जो लोग सीधे जिम्मेदार हैं, उन्हें तो ताक पर रख ही देना चाहिए, जबकि नेपाल के दबदबे वाले राजनैतिक वर्ग के साथ मेलजोल बढ़ाना होगा. सबसे ऊपर इसका यह भी तकाजा है कि लोगों से लोगों के बीच रिश्तों को मजबूत और गहरा किया जाए. दूसरी तरफ, अयोध्या को लेकर ओली के दावे शायद इतने गरिमामयी भी न हों कि भारत उनका दोटूक आधिकारिक जवाब दे.

प्रकाशित तारीख : 2020-07-31 13:10:12

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