दिल्ली में हुड़दंग के बाद पल्ला झाड़कर खुद को नहीं बचा पाएंगे किसान संगठन

दिल्ली में हुड़दंग के बाद उल्टा आरोप लगाकर पल्ला झाड़ रहे किसान संगठनों को भी अहसास होने लगा है कि वह लाख दलीलें दे रहे हों लेकिन भरोसा खो बैठे हैं। दरअसल अब वह जिन उपद्रवियों को बाहरी बता रहे हैं, पिछले दो महीने से वही तत्व आंदोलन स्थल पर मुखर और हावी रहे हैं। धरना स्थल पर ही खालिस्तान के नारे भी लगे, धरना स्थल पर ही कुछ लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सीधी धमकी भी दी। वहीं राजनीतिक शपथ दिलाने का कार्यक्रम भी हुआ। किसान संगठनों ने उनकी आलोचना तो दूर, यह कहकर उनका बचाव किया कि यह आंदोलन सभी का है। अब उसी तत्व से पल्ला झाड़कर बचने की कोशिश कर रहे हैं।

अब बचाव के फामूर्ले पर काम कर रहे हैं किसान संगठन

गणतंत्र दिवस के दिन शर्मनाक घटना के बाद किसान संगठनों और कुछ राजनीतिक दलों ने हमले को ही सबसे उपयुक्त बचाव के फामूर्ले पर काम किया। उस पुलिस पर आरोप लगाया गया जिसने इसका ध्यान रखा कि किसानों को कोई चोट न पहुंचे। उन लोगों से भी पल्ला झाड़ लिया गया जो लालकिले पर अपना ध्वज फहरा रहे थे या फिर सड़क पर पुलिस के ऊपर टैक्टर चढ़ाने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन यह किसी से छिपा नहीं कि इसी तेवर के लोग महीनों से किसान संगठनों के साथ बैठे हैं।

सात से आठ संगठन ऐसे हैं जिनकी पूरी विचारधारा वाम दलों से जुड़ी है और इनकी ओर से ही आंदोलन स्थल से उन लोगों की रिहाई की मांग की गई थी जो पर देशद्रोह और नक्सली गतिविधियों के दोषी हैं। बताया जाता है कि ऐसे साथ से आठ संगठन हैं जो किसान के मुद्दों से इतर राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित हैं और वही वार्ता से लेकर कार्यक्रम तय करने तक में हावी होते हैं।

लाल किले पर जहां वीभत्स दृश्य था वहीं हर मोर्चे पर किसान उग्र थे 

जब ट्रैक्टर परेड को लेकर सुरक्षा की आशंका जताई जा रही थी तब भी ये लोग संगठन के साथ ही थे। लेकिन जब उपद्रव शुरू हुआ तो कोई नेता नियंत्रण करता नहीं दिखा। लाल किले पर जहां वीभत्स दृश्य था वहीं हर मोर्चे पर किसान उग्र थे और नेता नजर से ओझल। इन नेताओं ने एक फरवरी को बजट दिवस के दिन संसद तक मार्च करने की भी बात कही थी। ऐसे में किसान संगठनों की ओर से अब सिर्फ खाल बचाने की कोशिश हो रही है। लेकिन यह मुश्किल ही दिखता है।

प्रकाशित तारीख : 2021-01-27 20:30:00

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