महिला दिवस विशेष : महिलाओं की विशेष अदालत जहां सुलझ जाते हैं कोर्ट और थानों में लंबित मामले

गाँव कनेक्शन

नई दिल्‍ली

गोद में पांच महीने का बच्चा लिए आरती भरी दुपहरी में पांच किलोमीटर पैदल चलकर आई थी, वो सुबकते-सुबकते पेड़ की छांव में बैठी कुछ महिलाओं को अपनी आपबीती सुना रही थी, "मेरे जेठ और देवर मेरी जमीन हड़पना चाहते हैं वो अक्सर मुझेे और मेंंरे पति के साथ मारपीट करते हैं।

मैं थाने में कई बार जा चुकी हूं, 3 मार्च को एक एप्लीकेशन भी लिखकर दी थी पर कोई सुनवाई नहीं हो रही," साड़ी के एक कोने से अपने आंसू पोछते हुए आरती ने कहा। दरी पर बैठी महिलाओं में से एक ने आरती को हौसला दिलाते हुए कहा, "आरती चुप हो जाओ, रोना बंद करो। अब तुम यहां आ गयी हो तुम्हे न्याय जरुर मिलेगा।"

आरती ने जहां अपना दर्द बांटा था वो ना कोई थाना था, न किसी अधिकारी का दफ्तर, ये किसी नेता का जनता दरबार भी नहीं था और ना ही फैसला सुनाने वाला कोर्ट, ये अपने तरह की एक विशेष अदालत है, जिसे नारी अदालत कहा जाता है।

दलित परिवार से तालुक रखने वाली आरती पासी (30 वर्ष) उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर पिसावां ब्लॉक के पथरी गाँव की रहने वाली हैं, जिनके परिवार में जमीन का एक मसला है। आरती के अनुसार उनके जेठ और देवर (पति के बड़े और छोटे भाई) उन्हें पैतृक जमीन से बेदखल करना चाहते हैं जिसको लेकर आये दिन वो लोग आरती के साथ मारपीट करते हैं। यही मामला लेकर आरती छह मार्च को इस नारी अदालत में न्याय के लिए बड़े भरोसे से आई थी। यहां बैठी महिलाएं आरती की बात बड़ी गम्भीरता से सुन रही थीं और उसे दिलासा दिला रही थीं कि वो फिक्र न करे उसे न्याय जरुर मिलेगा।

प्रकाशित तारीख : 2021-03-09 08:15:00

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