आखिर क्यों खस्ताहाल है बिहार की स्वास्थ्य सुविधा

DW

नई दिल्‍ली

आबादी के हिसाब से भारत के इस तीसरे बड़े राज्य का हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर वर्षों से मानकों से काफी नीचे है. समय-समय पर इसे लेकर हाय-तौबा मचती रही है किंतु परिस्थिति में कोई खास परिवर्तन नहीं आया. बिहार में सड़कों का जाल बिछ गया, बिजली की स्थिति सुधर गई, अन्य सरकारी भवनों की तरह अस्पतालों की बिल्डिगें भी बनीं, किंतु मानव संसाधन की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ. आज भी बिहार में चिकित्सकों व पारामेडिकल स्टाफ की भारी कमी है. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) की अनुशंसाओं के बावजूद इस दिशा में दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी के कारण पर्याप्त काम नहीं हुआ. यहां तक कि कोरोना की दोनों लहरों के बीच तैयारी के लिए मिले अच्छे खासे वक्त में भी राज्य सरकार ने उस स्तर की तैयारी नहीं की, जिसकी दरकार थी.

विभागी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में चिकित्सकों के 5674, शहरी क्षेत्रों में 2874 तथा दुर्गम इलाकों में 220 पद खाली पड़े हैं. जबकि शहरी, ग्रामीण व दुर्गम इलाकों में क्रमश: 4418, 6944 व 283 कुल सृजित पद हैं वहीं पटना हाईकोर्ट को सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार राज्य के सरकारी अस्पतालों में विभिन्न स्तर के 91921 पदों में से लगभग आधे से अधिक 46256 पद रिक्त हैं. इनमें विशेषज्ञ चिकित्सकों के चार हजार तथा सामान्य चिकित्सकों के तीन हजार से ज्यादा पद खाली पड़े हैं. डब्लूएचओ के मानकों के अनुसार प्रति एक हजार की आबादी पर एक चिकित्सक होना चाहिए, किंतु बिहार में 28 हजार से अधिक लोगों पर एक डॉक्टर है. आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में 1899 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी) हैं. इनमें महज 439 केंद्र पर ही चार एमबीबीएस चिकित्सक तैनात हैं, जबकि तीन डॉक्टरों के साथ 41, दो के साथ 56 तथा एक चिकित्सक के साथ 1363 पीएचसी पर काम हो रहा है.

प्रकाशित तारीख : 2021-06-12 08:11:00

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