नागरिकता संशोधन का विरोध कितना जायज ?

नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन - फोटो : पीटीआई

प्रख्यात लेखिका सुश्री ‘‘लैरी मे’’की रिपोर्ट ‘‘क्राइम अगेंस्ट हृयूमैनिटी-2019’’ने पूरे विश्व में उथल-पुथल मचा दी थी। रिपोर्ट के बाद से अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक उत्पीड़न से सम्बंधी प्रकरणों को और अधिक गंभीरता से लिया जाने लगा। अमेरिका एवं यूरोप के कुछ देशों में हाल में नागरिक संशोंधनों व कानूनों में धार्मिक उत्पीड़न से ग्रसित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के प्रावधानो में प्राथमिकता दिखने लगी है।उल्लेखनीय है कि वर्ष 2000 से भारत के पड़ोसी राष्ट्रों  में मानवाधिकार उल्लंघन व अल्पसंख्यक उत्पीड़न की शिकायतें हद पार कर रही थी, उसका प्रभाव भारत की आंतरिक व्यवस्था पर स्वाभाविक रूप से दिखा था।

कूटनीति के विशेषज्ञ प्रो. एपीजे अप्पादुरई ने 1968 में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘‘डोमैस्टिक रूट्स ऑफ इण्डियन फॉरेन पॉलिसी’’में लिखा था कि किसी भी देश की आंतरिक नीति उस देश की सीमाओं में आने वाली बाहरी हवाओं से प्रभावित होती हैं। देश की नीति-रीति के स्वर भी उसी क्रम में परिवर्तित होते हैं। 

प्रकाशित तारीख : 2020-01-10 01:40:50

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