कोरोना वायरस, जेल और एक तिनका संवाद

कोरोना वायरस के प्रभाव के बीच जेल की कई बड़ी खबरें फिर नजरअंदाज कर दी गईं। पहली खबर यह कि ईरान की सरकार ने अपनी जेलों से कम जोखिम वाले 85,000 बंदियों को अस्थायी तौर पर रिहा कर दिया है ताकि जेलों में इस संक्रमण के फैलने के खतरे से बचा जा सके। दूसरी खबर भारत से है। सुप्रीम कोर्ट ने भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के जेल महानिदेशकों से जेलों में कोरोना को फैलने से रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने को कहा। 

इसके तुरंत बाद भारत की तकरीबन सभी जेलों से रिहा होने की पात्रता पूरी कर रहे बंदियों की सशर्त रिहाई का काम तेजी से शुरू हो गया। इनमें विचाराधीन और सजायाफ्ता, दोनों ही बंदी शामिल हैं, लेकिन संगीन अपराधों वाले अपराधियों की रिहाई नहीं होगी। यह कदम उचित और तर्कसंगत है। इस कदम को उठाए जाने के बीछे दो विशेष कारण हैं- एक तो भीड़ से भरी जेलें और दूसरे किसी भी संक्रमण के होने पर जेलों पर काबू पा सकने की मुश्किल। 
  
चूंकि जेलों में मुलाकाती, जेल स्टाफ और वकील नियमित तौर पर आते हैं, ऐसे में जेलों में संक्रमण बढ़ने की आशंका की बेवजह नहीं है। इस दौरान देश की सभी जेलों में कोरोना से संक्रमित कैदियों को अलग रखने की व्यवस्था की गई जबकि तिहाड़ में सभी 17,500 बंदियों का परीक्षण कर लिया गया। देश भर में बंदियों की मुलाकातों को फिलहाल बंद कर दिया गया है। नए बंदियों को तीन दिन के लिए अलग वार्ड में रखने का प्रावधान भी कर दिया गया।  

देश की 1,339 जेलों में करीब 4,66,084 कैदी बंद हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, देश की जेलों में औसतन क्षमता से 117.6 फीसदी ज्यादा बंदी हैं। उत्तर प्रदेश और सिक्किम जैसे राज्यों में यह दर क्रमश: 176.5 फीसदी और 157.3 फीसदी है। यानी हमारी जेलें अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा भीड़ से लबालब हैं। कोरोना के संकट के बीच सुप्रीम कोर्ट को एक बार फिर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इस समस्या की याद दिलानी पड़ी है। 

प्रकाशित तारीख : 2020-04-05 20:03:35

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