अर्थ डे की गोल्डन जुबली पर प्रकृति के प्रति सोच बदलने की जरूरत

दुनिया अर्थ डे की गोल्डन जुबली (50वीं सालगिरह) मना रही है, लेकिन आज इसे मनाने के लिए लोग घर से बाहर नहीं निकलेंगे और ना हीं कोई सामूहिक प्रदर्शन या संगोष्ठी का आयोजन होगा। कारण एक ही है कि इस बार कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण अर्थ डे ऑनलाइन यानी वर्चुअल प्लेटफॅार्म पर मनाया जा रहा है।
लोग धरा को बचाने के लिए अपने विचार, योजना, उपाय, प्रदर्शन और ग़ुस्से के इजहार के लिए ऑनलाइन मंच का सहारा ले रहे हैं। हम लोगों को मामले की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाना चाहिए कि जिस प्रकृति को बचाने के लिए हम तरह-तरह की बातें करते हैं, वह बार-बार हमें बदलने को कह रही है।

प्रकृति इस बार अर्थ-डे पर कुछ नया करने की जगह सोच बदलने को बोल रही है ताकि धरती फिर से खुशहाल हो जाए। पूंजीवादी व्यवस्था, गलाकाट प्रतिस्पर्धा और हमारी गलत आदतों ने पर्यावरण को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया है, इसलिए धरती को बचाने के लिए अभी से भी इनमें सुधार होना चाहिए। यूनाईटेड नेशन इनवायरन्मेंट प्रोग्राम की एक रिपोर्ट के मुताबिक अगर धरती के तापमान को 1.5 डिग्री सेंटीग्रेड के अंदर रखना है तो इस वर्ष के अंत तक वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 7.6% तक कम होना चाहिए। जबकि आगे के वर्षों में भी इतनी गिरावट बरकरार रहना जरूरी है।

आज ही के दिन क्लाइमेट एक्शन को लेकर पेरिस समझौता भी किया गया था। जिसमें सभी देशों ने जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में एकजुटता दिखाई थी। इसके बावजूद आज पेरिस समेत दुनिया भर में महामारी का ताडंव जलवायु, प्रकृति और धरती को लेकर मानव की अनदेखी का नतीजा है।

यह हमारे गैरजिम्मेदार रवैये का ही परिणाम है कि आज मानव जाति अपने बचाव के लिए प्रकृति से पनाह मांग रही है। इसलिए यह जरूरी है कि हमारी करतूतों से पृथ्वी के प्राकृतिक वातावरण को हुए नुकसान का आकलन किया जाए। धरा को हरा-भरा बनाए रखने के लिए अभी से भी वचनबद्ध हुआ जाए, तब ही शायद सही मायने में अर्थ डे का उत्सव सफल होगा। 

प्रकाशित तारीख : 2020-04-23 10:30:42

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