कहां ले जाएगा कृषि में बढ़ता लागत घाटा ?

प्रभुनाथ शुक्ला

अर्थव्यवस्था में कृषि का बड़ा योगदान है। देश की ७० फीसदी आबादी कृषि पर आत्मनिर्भर है। लेकिन हमारी कृषि आज भी मानसून आधारित है। अगर मानसून बेहतर रहा तो अच्छे उत्पादन की उम्मीद बंधती है। आर्थिक विशेषज्ञों ने अपने विश्लेषण में यह उम्मीद जताई है कि लॉकडाउन के बाद भी कृषि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। कृषि और किसानों की वजह से देश की अर्थव्यवस्था पर उतना प्रभाव नहीं पड़ेगा जितना पड़ना चाहिए। देश की विकास दर में कृषि का योगदान तीन फीसदी की जताई गई है। यह सुखद उम्मीद है लेकिन लॉकडाउन में मजदूरों के पलायन और कृषि उत्पादों का जो बड़ा नुकसान हुआ है उसकी भरपाई कहां से होगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने २० लाख करोड़ के पैकेज का एलान किया है। यह देश की जीडीपी का दस फीसदी है। उस पैकेज से सरकार आत्मनिर्भर भारत का आगाज किया है। सरकार की इस घोषणा के बाद शेयर बजार में उछाल आ गया है। लेकिन आत्मनिर्भर भारत पैकेज से किसानों को कितना लाभ होगा अभी यह कहना जल्दबाजी होगी।

लॉकडाउन की वजह से किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा साबित हुई है। अच्छे उत्पादन के बाद भी बजार और ट्रांसपोर्ट उपलब्ध न होने से फसलें तबाह हो गर्इं, जिसकी वजह से उन्हें बड़ा नुकसान हुआ है। किसानों ने खेतों में फल और सब्जियों की फसल को जुतवा दिया है। लॉकडाउन उनके लिए बड़ी मुसीबत बनकर आया है। असमय बारिश और लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। किसानों को इस आर्थिक नुकसान की भरपाई बड़ी आवश्यक है।

अगर सरकार इस पर गम्भीरता से विचार नहीँ किया तो किसानों की रीढ़ टूट जाएगी। क्योंकि लागत और मुनाफे के बीच कृषि का घाटा बढ़ गया है। आपको  याद होगा दो साल पूर्व नासिक के प्याज उत्पादक किसान संजय साठे ने ७०० कुंतल प्याज बेचने बाद उसके एवज में मिले १००० रुपए से अधिक की राशि प्रधानमंत्री मोदी को मनीआर्डर किया था। किसान ने यह क़दम गुस्से में उठाया था। क्योंकि प्याज का बाजार मूल्य गिरने से प्याज का लागत मूल्य भी किसान नहीँ निकाल पाया था।

प्रकाशित तारीख : 2020-05-19 12:29:29

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